विद्रोही
समाज में मैंने उस औरत से प्रेम किया
जो डरती रही समाज से।
वो मानती भी रही उसी खोखले समाज को,
जिसने हज़ारों दफा उसे बदनाम करने की कोशिशें की
और मैं,
उसे बदनाम होने से बचाने को
चोरी - छिपे चुंबनों से गुज़ारा करता रहा, उम्र भर।
लोग कहते हैं,
वैश्या दिखती थी वो जब सिगरेट पीती थी वो,
हां वैश्या जैसी खूबसूरत दिखती थी वो।
वही लोग जो बताते हैं
मुझे इश्क़ की कहानियों में महफूज़-
वो मुझे नहीं जानते।
तुम नहीं जानते कि
आग का गोला लिए ये बालक कैसा है।
कितना बेचैन है?
और,
समाज में इतनी कुरीतियां हैं कि
अगर लिख दूं मैं
और
वो भी, अपने तरीके से
तो पचा नहीं पाओगे तुम।
उस अनहोनी के बाद
ना मैं तुम्हारा दोस्त रह पाऊंगा
नाहिं भाई, ना बेटा, ना बाप.......
बस ' विद्रोही ' कह पाओगे तुम मुझे।
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