Writer's block
बचा नहीं कुछ लिखने को
या
लिखना भूल सा गया हूं मैं
या
आता ही नहीं था कभी लिखना
और
लिखावट भी शायद झूठ होगी।
यूं कि
लोग वही.....कहानी वही
बस चेहरे नए... निशानी वही।
थोड़ा प्रेम,
थोड़ी बहस....बाद का पता नहीं
शायद तुम्हें भी नहीं।
अगर मैं कहूं-
जिए हुए शामों को आधा-पौना फिर से जीना
उधार सा लगता है।
तुम्हे भी?
बताओ ना।
तुम कुछ नया जी रहे हो क्या?
साजन-ईला, जॉर्डन-हीर
देव-पारो, आदित्य-गीत
इनमें से कोई हो तुम?
दिल में कुछ नाम हैं जो अभी भी याद से हैं?
या फिर रोज़ का वही बातूनी प्रेम
जो प्रेम नहीं है....जो साफ़-साफ़ उसे भी नहीं दिखता,
और, शायद तुम्हे भी नहीं।
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